गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 104

Prev.png

गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 2

अस्तु, संसार के सम्पूर्ण शुभाशुभ ज्ञान, शुभाशुभ विनिर्मुक्त भगवत चित् स्वरूप का ही परिणाम है तथापि शुभज्ञान ग्राह्य एवं अशुभ ज्ञान अग्राह्य। सच्चित्वत् आनन्द भी सम्पूर्ण प्रपन्च का कारण है।

'आनन्दाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते आनन्देन जातानि जीवन्ति। आनन्दं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।'[1]

जिस प्रकार सर्व विशेषणमुक्त सत् ब्रह्म है उसी प्रकार निर्विशेष आनन्द भी शुद्ध परब्रह्म ही है। शुभाशुभ-विशेषणशून्य सत्-तत्त्व हेयोपादेयरहित हैं। सततत्त्व ही सुख-दुःखादि शुभाशुभ-विशेषणविशिष्ट होकर हेय अथवा उपादेय हो जाता है क्योंकि कार्य-कारण में अभिन्नता होती है। जैसे मृत्तिका का परिणाम घट उससे अभिन्न होता हुआ भी मूत्तिका के विशेषण रूप से भी अभीष्ट है अथवा जैसे घटाकाष, महाकाश का अवच्छेदक है और उसका विशेषण भूत घट भी आकाश से अभिन्न है उसी प्रकार शुभाशुभ विशेषण भी सत्-तत्त्व से अभिन्न ही है, तथापि व्यवहारतः विशेषण भूत होकर उसका भेदक भी है।

अस्तु, सत् एवं चित् की तरह ही आनन्द भी शुभाशुभातीत ब्रह्मस्वरूप भूत ही है। शुद्ध आलम्बन एवं उद्दीपन के योग से जिस रस की अभिव्यन्जना होती है वह शुभ रस तथा अशुभ आलम्बन एवं उद्दीपन के योग से उद्बद्ध रसाभिव्यन्जना ही अशुभ है। शुभाशुभातीत विशुद्ध रसात्मक स्वरूप ही साक्षात परब्रह्म परमेश्वर है। देवता के आलम्बन एवं देव-विषय के उद्दीपन के संयोग से जिस रस की अभिव्यंजना होती है वह भक्ति के अन्तर्गत आ जाती है; रसस्वरूप परमात्मा के तत्-तत् देवतास्वरूप आलम्बन एवं उद्दीपन के संयोग से उद्बुद्ध भाव स्वयं ही रसात्मक हैं। लौकिक कान्त-कान्ता के संगम से प्रस्फुटित रसाभिव्यंजना भी मूलतः रसात्मक ही है तथापि लौकिक आलम्बन एवं उद्दीपन के संयोग से प्रस्फुटित होने के कारण अप्राकृतिक नहीं है। वस्तुतः श्रृंगार-रस ही अंगी-रस है, अन्य सम्पूर्ण रस श्रृंगार-रस के ही अंग हैं। भगवान ही सम्पूर्ण रस के अधिष्ठाता एव अधिपति हैं। भगवन्निष्ठ रस ही प्रसरित होकर संसार के भिन्न-भिन्न रसों में परिणत हो गया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तै० उ० 3।6

संबंधित लेख

गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः