गोपालहिं लै आवहू मनाइ।
अब की बार कैसैंहू ऊधौ, करि छल बल चतुराइ।।
दीजौ उनहिं उरहनौ मधुकर, सनै सनै समुझाइ।
जिनहिं छाँड़ि मथुरा तुम आए, ते कहा करै जदुराइ।।
बार बार हौं बहुत कहा कहौ, बिनती बहुत बनाइ।
पाँइ पकरि ‘सूरज’ प्रभु ल्यावहु, नंद की सोहँ दिवाइ।।3775।।