गोकुला के बासी भले ही आए -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग परज




गोकुला के बासी भले ही आए, गोकुला के बासी ।।टेक।।
गोकुल की नारि देखत, आनँद सुखरासी ।
एक गावत एक नाँचत, एक करत हांसी ।
पीतांबर फेटा बांधे, अरगजा सुबासी ।
गिरिधर से सुनवल ठाकुर, मीरां सी दासी ।।166।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गोकुला के बासी = गोकुला निवासो ( श्रीकृष्ण )। भलेही = खूब अच्छा हुआ। देखत = देखती हैं। करत हंसी = हँसी मजाक करती हैं। अरगजा = एक प्रकार का सुगन्धित द्रव्य। सुनवल ठाकुर = सुंदर युवक मालिक।

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