गोकुलनाथ विराजत डोल -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कल्यान


गोकुलनाथ विराजत डोल।
संग लिये वृषभानुनंदिनी, पहिरे नील निचोल।।
कंचन खचित लाल मनि मोती, हीरा जटित अमोल।
झुलवहि जूथ मिलै ब्रजसुंदरि, हरषित करतिं कलोल।।
खेलतिं, हँसति परस्पर गावति, बोलतिं मीठे बोल।
'सूरदास' स्वामी, पिय प्यारी, झूलत है झकझोल।।2919।।

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