गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 87

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ तृतीय सन्दर्भ

Prev.png

"हे सखी राधे! यह निश्चित है कि तुम्हारे प्राणनाथ श्रीकृष्ण तुम्हें छोड़कर किसी दूसरी के साथ विहार कर रहे हैं, शारदीया रास-रजनी में प्रथम महोत्सव में श्रीकृष्ण ने तुम्हारे असमोर्द्ध रूप-गुण माधुरी का अनुभव कर लिया था। तुम्हारे प्रति सर्वविदित अनुराग को वे सार्थक मानने लगे थे। अत: कदाचित्र तुम्हारी सरीखी कोई इस व्रजमण्डल में है या नहीं, यह जानने के लिए पत्थर की खुदाई की क्रिया की भाँति उसे ढूँढ़ते हुए कुछ दिनों के लिए इधर उधर निकल गये हैं। अथवा तुम्हारे सदृश कोई है या नहीं यह जानने की इच्छा से श्रीकृष्ण के अभिप्राय के अनुसार योगमाया ने कंस को प्रेरणा दी और कंस ने अक्रूर को नन्दगाँव भेजा, श्रीकृष्ण ने अक्रूर के साथ नारी संकुला बहुसंख्यक स्त्रियों के संग से परिवेष्टित मथुरापुरी में प्रस्थान किया।

श्रीकृष्ण ने देखा, मथुरा मण्डल में व्रजसुन्दरियों जैसा सौन्दर्य किसी का नहीं और न ही उनके जैसा गुणाकर्षण है। तब इस चाह में वे मानो द्वारका के लिए प्रस्थान कर गये। द्वारका में तब श्रीकृष्ण ने नरेन्द्र कन्याओं के साथ विवाह किया, वहाँ भी सफलता न मिलने पर नरकासुर द्वारा अपहृत गन्धर्व कन्या, यक्ष कन्या, नाग कन्या एवं मानव कन्याओं (जिनकी संख्या षोडश सहस्र है) से विवाह कर लिया, फिर भी हे राधिके! तुम्हारे समान किसी को भी न देखकर दन्तवक्र वध के पश्चात् पुन: व्रज में लौट आये हैं।"

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः