गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 83

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्

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पद्यानुवाद
हरि हरे व्यथा सब मनकी
जिनके वक्षस्थलपर अप्रित केशर कमला स्तनकी।
जिनपर छाई शोभा रतिके श्रमके मंजुलकणकी
हरि हरे व्यथा सब मनकी॥

बालबोधिनी- कवि श्रीजयदेव जी ने पूर्व गीति में प्रभु से प्रार्थना करने के उपरान्त श्रोताओं को आशीर्वाद प्रदान करने के लिए प्रस्तुत श्लोक की अवतारणा की है।

पद्मापयोधर तटी-जब व्रजविलासी श्रीकृष्ण अपनी प्रियतमा का आलिंगन करते हैं, तो उनके स्तनों के प्रान्त-भाग तक लगे हुए कुंकुम-केशर द्रव की छाप भगवान् के वक्ष:स्थल पर अप्रित हो जाती है। श्रीराधा जी से सर्वाधिक प्रीति रखने के कारण उनका हृदय राधिकानुराग से रञ्जित रहता है (अनुराग का रंग रक्तवर्ण होता है।) पयोधर तटी पद से स्तनों का उन्नतत्त्व तथा प्रान्त भाग को पर्वत की तलहटी के समान सूचित किया है।

परिरम्भ लग्न काश्मीर स्तन तटों में लेपित काश्मीर द्रव से संलग्न श्रीकृष्ण का वक्ष:स्थल दीर्घकालपर्यन्त किये गये प्रगाढ़ आलिंगन को सूचित करता है। मुद्रित मुरो-श्रीस्वामिनी जी का कुचकुंकुम श्रीकृष्ण के वक्ष:स्थल में मुद्रण यन्त्र की भाँति चिह्नित हो गया है। वह अमिट रूप से सुशोभित हो रहा है। अहो! धन्य है स्नेहातिशयता।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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