विषय सूची
श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्
श्रीजयदेवकवेरिदं कुरुते मुदम्। अनुवाद- श्रीजयदेव कवि प्रणीत यह मनोहर, उज्ज्वल गीतिमय मंगलाचरण आपका आनन्द वर्द्धन करें अथवा आपके गुणों के श्रवण कीर्तन करने वाले भक्तजनों को आनन्द प्रदान करें। आपकी जय हो! जय हो ॥9॥ पद्यानुवाद बालबोधिनी- कवि श्रीजयदेव जी भगवान की स्तुति की समाप्ति पर निवेदन करते हैं कि मैंने मंगलाचरण में उज्ज्वल रस की गीति तथा श्रीराधामाधव के केलिविलास-वर्णन करने का संकल्प लिया तो इससे मेरा हृदय आनन्द से अतिशय तरंगायित हो उठा है। यदि मंगलाचरण में ही इतना आनन्द है, तब श्रीराधामाधव के केलिविलास वर्णन करने में न जाने कितना आनन्द होगा। यह मेरा मनोहर मंगल गीत आपके लिए आनन्दप्रद बने, सुनने-सुनाने वालों का भी कल्याणप्रद बने। मंगलाचरण के इन नौ श्लोकों में मंगल छन्द है ॥9॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- श्रीजयदेवकवे: इदम् उज्ज्वलगीतं (उज्ज्वलं यथा तथा गीतं) मंगलं (मांगलिकं वचनम्र अथवा मंगलाचरणमांत्र कर्त्तृ) मुदं (हर्षं) कुरुते (जनयति; तव भक्तानां चेतसीति शेष:) हे देव हरे त्वं जय जय ॥9॥
संबंधित लेख
सर्ग | नाम | पृष्ठ संख्या |