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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्
कालिय विषधर गञ्जन जन रञ्जन हे। बालबोधिनी- कवि श्रीकृष्ण को अपना उपास्य होने पर भी ध्येय विषय के रूप में स्तुति कर रहे हैं। इसमें श्रीकृष्ण का धीरोद्धत नायकत्व प्रस्तुत किया जा रहा है। कालिय विषधर गञ्जन श्रीकृष्ण भगवान ने यमुना में रहने वाले कालिय दह में कालिय नामक सौ फणवाले महा विषधर सर्प का गर्व खर्व (चूर्ण) कर दिया। जन-रञ्जन ए भगवान ने कालिय दमन से व्रजजनों को आह्लादित किया। श्रीकृष्ण भलीभाँति जानते हैं कि व्रजजन उनके अतिरिक्त कुछ भी नहीं चाहते, यहाँ तक कि वे मेरे बिना प्राण भी धारण नहीं कर सकते, उनकी रक्षा, उनका अनुरञ्जन श्रीकृष्ण को भी करणीय हो जाता है। हे जन अनुरञ्जन कारिन! आपकी जय हो!! यदुकुल-नलिन-दिनेश गोपगण ही यादव हैं। अतएव भगवान ही गोकुल के प्रकाशक हैं। जिस प्रकार भास्कर के उदित हो जाने पर अरविन्द प्रफुल्लित हो जाता है, उसी प्रकार श्रीभगवान के द्वारा यदुवंश में अवतार ग्रहण करने से यदुवंश विकसित हुआ है। प्रस्तुत पद में श्रीभगवान को बलशाली, जन-आह्लादकारी गुण सम्पन्न एवं कुलीन बताया है। अत: हे देव! आप हम जैसे मात्सर्य भावयुक्त अहप्रारियों का अहप्रार चूर्ण कर हमारा अनुरञ्जन करें। धीरोद्धत मात्सर्यवान, अहप्रारी, मायावी, रोष-परायण, चञ्चल, विकथनकारी नायक को धीरोद्धत नायक कहा जाता है ॥3॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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