गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 72

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्

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पद्यानुवाद

दिनमणि मण्डित भव खण्डित हे।
मुनिजन मानस हंस जय जय देव हरे

बालबोधिनी - दिनमणि मण्डल मण्डन! श्रीभगवान का सूर्यमण्डल के भीतर अन्तर्यामी रूप में निवास है। वे ध्येय एवं चिन्तनीय हैं।

ध्येय: सदा सवितृमण्डल मध्यवर्त्ती, नारायण: सरसिजासन सन्निविष्ट:।

जैसे सूर्यमण्डल सभी के द्वारा पूज्य हैं, उसी प्रकार आप भी सबके द्वारा चिन्तनीय एवं उपास्य हैं। और भी कहा है ज्योतिरभ्यन्तरे श्याम सुन्दरमतुलं॥

भवखण्डन ए-एष आत्मा पहतपाप्मा विजरो विमृत्युर्विशोको विजिघत्सो पिपास: सत्यकाम: सत्यसप्रल्प:।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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