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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
श्रीश्रीगुरु-गौरांगौ जयत:
प्रस्तावना(च)श्रीगीतगोविन्द आजकल शिक्षित समाज में श्रृंगाररसात्मक सुमधुर काव्य के रूप में ही प्रसिद्ध है और उसके प्रणेता पूज्यपाद श्रीजयदेव गोस्वामी एक असाधारण कवि के रूप में हैं। परन्तु श्रीगीतगोविन्द काव्य होने पर भी केवल छन्दोबद्ध रसात्मक वाक्य स्वरूप लोकप्रसिद्ध आलंकारिक काव्य नहीं है। जयदेव गोस्वामी स्वयं कवि होने पर भी सुमधुर पदविन्यास करने में कुशल रचनाकार और स्वभाव विकासक केवल कविमात्र नहीं हैं। श्रीगीतगोविन्द सर्ववेद का सार एवं श्रीजयदेव गोस्वामी सर्ववेद विशारद परम साधक और सिद्ध भी हैं। पाठकगण श्रीगीतगोविन्द का पाठ करने से पूर्व या आरम्भ में यह देखेंगे कि ग्रन्थ कारने अपने इष्टदेवता के स्मरण रूप मगंलाचरण में यही लिखा है- अर्थात श्रीयमुना पुलिन में श्रीराधामाधव की गम्भीर एवं सुगूढ़ विहार लीला सर्वोपरि विराजमान हो रही है। द्वितीय श्लोक में उनके वर्णनीय विषय का परिचय दिया है- अर्थात् जयदेव कवि श्रीवासुदेव ब्रजेन्द्रनन्दन श्यामसुन्दर की परम आनन्दमय रतिविहार का अवलम्बन करके यह प्रबन्ध लिख रहे हैं। जैसा कि हमने पहले कहा है, तृतीय श्लोक में उन्होंने इस ग्रन्थ का अधिकारी भी निर्णय किया है-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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