गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 64

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्

Prev.png

बालबोधिनी- इस गीत गोविन्द काव्य के प्रथम सर्ग के प्रथम प्रबन्धके दश पद्यों में कवि जयदेव जी ने भगवान श्रीकृष्ण के अवतारों की मनोरम लीलाओं का चित्रण किया है। दश अवतार स्वरूप को प्रकट करने वाले श्रीकृष्ण ने मत्स्य रूप में वेदों का उद्धार किया, कूर्म रूप में पृथ्वी को धारण किया, वराह रूप में पृथ्वी का उद्धार किया, नृसिंह रूप में हिरण्यकशिपु को विदीर्ण किया, वामन रूप में बलि को छलकर उसे अपना लिया, परशुराम रूप में दुष्ट क्षत्रियों का विनाश किया, बलभद्र रूप में दुष्टों का दमन किया, बुद्ध के रूप में करुणा का विस्तार किया, कल्कि रूप में म्लेच्छों का नाश किया इस प्रकार दशविध अवतार धारण करने वाले हे भगवान श्रीकृष्ण! आपको नमस्कार है ॥12॥

इति दशावतार कीर्त्तिधवलो नाम प्रथम: प्रबन्ध:।


इस प्रकार प्रथम प्रबन्धमें दशावतार स्तोत्र कीर्त्तिधवल नामक छन्द है। प्रस्तुत प्रबन्ध में पारस्वर, मध्यमादि राग, आदि ताल, विलम्बित लय, माध्यमी रीति तथा श्रृंगार रस है। इसमें वासुदेव भगवान के यश का वर्णन है॥

इति श्रीगीतगोविन्दे प्रथम: सन्दर्भ:।
Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः