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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
लेच्छ-नाश-असि धरे विशाला, बालबोधिनी - दशवें पद में भगवान के कल्कि अवतार की प्रशंसा की जा रही है। बिना युद्ध किये प्राणियों का संहार नहीं होगा, बिना संहार किये शान्ति भी नहीं आयेगी। इसलिए आप कल्कि रूप धारण कर म्लेच्छों का विनाश करते हैं। दुष्ट मनुष्यों का संहार करने के लिए भगवान भयंकर काल कराल रूप तलवार को धारण करते हैं। 'किमपि' पद से कवि द्वारा कृपाण की भयंकर स्वरूपता दिखाई है। धूमकेतुमिव- धूमकेतु एक तारा विशेष का नाम है। जिसके उदित होने पर महान उपद्रव की शंका की जाती है। भगवान का कृपाण रूपी धूमकेतु म्लेच्छों के अमंग लंका सूचक है। धूमकेतु शब्द अग्नि का भी वाचक है, जिससे म्लेच्छ समुदाय का अनिष्ट सूचित होता है। प्रस्तुत पद के नायक धीरोद्धत हैं। कल्कि भगवान को वीर रस का अधिष्ठाता माना जाता है ॥10॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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