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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
दशमुख मौलि बलिम्-इस पद की व्युत्पत्ति दशमुखस्य ये मौलया तान्येव बलिम अर्थात रावण के किरीट मण्डित शिर ही बलि हैं। यद्यपि मौलि शब्द शिर और किरीट दोनों का वाचक है तथापि मौलि मण्डित शिर यह अर्थ तटस्थ लक्षण के द्वारा स्वीकार किया जाता है ॥7॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय - हे केशव! हे धृतहलधररूप! (धृतबलदेवशरीर!) त्वं विशदे (शुभ्रे) वपुषि (देहे) जलदाभं (नवघनश्यामं) [अतएव] हल-हति-भीति-मिलित-यमुनाभं (हलस्य ला लांगस्य हत्या आघातेन या भीति: तया मिलिता पादपतिता शरणागता इति यावत् या यमुना तस्या भा: प्रभाइव भा दीप्तिर्यस्य तादृशं) वसनं (वस्त्रं नीलाम्बरमित्यर्थ:) वहसि (धारयसि)। हे जगदीश, हे हरे, त्वं जय ॥8॥
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