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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
दिक्रपति कान्ति हुई कमनीया, बालबोधिनी - सातवें पद्य में श्रीराम-स्वरूप का वर्णन हुआ है। हे प्रभो! प्रिया वियोगादि दु:ख को सहन करने के लिए आप रघुकुल तिलक श्रीराम रूप में अवतरित हुए। भयानक संग्राम में संसार रुलाने वाले रावण के दश मस्तकों को अनन्त काल के लिए समर्पित कर दिया है अर्थात रावण के शिरों को काटकर श्रीभगवान ने दिक्पालों को बलि चढ़ाया जिससे कि संसार में राक्षसों के द्वारा बढ़े हुए उत्पातों की शान्ति हो जाय। दिक्पालों को रावण की बलि अत्यन्त अभीष्ट थी। रावण का वध हो जाने से यह बलि लोकाभिराम बनी। इस बात को जयदेव कवि ने 'दिक्रपति कमनीयम्र' एवं 'रमणीयम्र' इन दो पदों के द्वारा अभिव्यक्त किया है। दिक्रपालों की संख्या दश है तथा रावण के किरीट मण्डित शिरों की संख्या भी दश ही है। यही कारण है कि दिक्पालों को यह बलि अत्यन्त कमनीय थी। दूसरों को उद्वेग देने वाले रावण का संहार कर भगवान ने जगत में सभी का आनन्द वर्द्धन किया है। इस पद के नायक धीरोदात्त हैं। भगवान के राम अवतार में करुण रस का प्रकाश होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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