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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
'वीर-रुधिर' से धो पापों को, बालबोधिनी - छठवें पद्य में श्रीपरशुराम अवतार की स्तुति की है, हे प्रभो! भृगुपति रूप धारण कर आपने एक बार नहीं, इकतीस बार ब्राह्मण विद्वेषी क्षत्रियों का विनाशकर उनके रुधिर से निर्मित सरोवर को कुरुक्षेत्र का ह्रद तीर्थ बना दिया है, जिसमें स्नान करने से समस्त जगत के प्राणियों के पापों का मोचन होता है और संसार के समस्त तापों से मुक्ति मिलती है। ज्ञान की उत्पत्ति होने से उत्तापों की शान्ति होती है। प्रस्तुत पद में स्वाभाविकोक्ति अलप्रार तथा अद्भुत रस है। परशुराम अवतार को रौद्र रस का अधिष्ठाता माना जाता है। यहाँ तक छह पद्यों के नायक को धीरोद्धत नायक कहा जाता है ॥6॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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