गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 509

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

द्वादश: सर्ग:
सुप्रीत-पीताम्बर:

चतुर्विंश: सन्दर्भ:

24. गीतम्

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यद्गान्धर्व-कलासु कौशलमनुध्यानं च यद्वैष्णवं
यच्छृंगार विवेक-तत्त्व-रचना-काव्येषु लीलायितम।
तत्सर्वं जयदेव पण्डित-कवे: कृष्णैकतानात्मन:
सानन्दा: परिशोधयन्तु सुधिय: श्रीगीतगोविन्दत: ॥2॥[1]

अनुवाद- जो गान्धर्व कलाओं में कौशल हैं, श्रीकृष्ण का जो ध्यान है, श्रृंगार रस का जो वास्तविक तत्त्व-विवेचन है, भगवद्लीला का जो काव्य में वर्णन है, उन सब को भगवान श्रीकृष्ण में एकाग्रचित्त रखने वाले विद्वान श्रीगीतगोविन्द नामक काव्य से आनन्दपूर्वक परिशोधन करें। अर्थात समझें और समझायें।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- [अथोपसंहारेऽपि स्वाभीष्टोपासनाया: सर्वोत्तमता निश्चयावेशेन कारुण्योदयात् तत्र सन्दिहानान् भक्तरसिकजनान् प्रत्याह]- भो: सुधिय: (श्रीकृष्णभक्तिरसोल्लासितचित्ता: साधव:) [भवन्त:] सानन्दा: (आनन्देन सहिता: सन्त:) कृष्णैकतानात्मन: (कृष्णे एकतान: एकाग्र: अनन्यवृत्तिरिति यावत् आत्मा मन: यस्य तस्य; श्रीकृष्णैकान्तभक्तस्यैव सर्वगुणाश्रयत्वादित्यर्थ:; यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्यकिञ्चने इत्युक्ते:) जयदेव-पण्डितेकवे: (पण्डासद-सद्रविवेचिका बुद्धि: तया अन्वित: कवि: सत्काव्य-कर्त्ता जयदेव एव पण्डितकविस्तस्य) श्रीगीतगोविन्दत: (श्रीगीत-गोविन्द-ग्रन्थात्) [वक्ष्यमाणं] तत् सर्वं परिशोधयन्तु (परि सर्वतोभावेन शोधयन्तुं आशंकापंकुमुद्धार्य निश्चिन्वन्तु इत्यर्थ:) तत् किमित्याह]- यत् गान्धर्वकलासु (संगीतशास्त्रोक्त- गीतराग-तालादिषु) कौशलं (नैपुण्यं) [तदेव निर्वन्धानुसारेण जानन्तु इत्यर्थ:]; [न केवलमेतत्, अपि तु] यत्र वैष्णवं (वेवेष्टि विश्वं व्याप्नोतीति विष्णु:; सर्वव्यापनशीलस्य विष्णु: अचिन्त्या- नन्तशक्ते: स्वयं भगवत: श्रीकृष्णस्य भजन-विषयकं) अनुध्यानं (अनुचिन्तनं स्वाभीष्ट-तल्लीलाविचार-समाधानात् अनुक्षण-चिन्तनमित्यर्थ:) [तदपि एतद्रदृष्ट्येव निश्चिन्वन्तु नित्यत्व- सर्वोत्तमत्वनिश्चयात् द्रढ़ीकुर्वन्तु इतिभाव:] यदपि श्रृंगारविवेकतत्त्वं (तत्रपि दुरूहगते: श्रृंगारस्य-महाप्रेमरसस्य विवेके विचारे यत् तत्त्वं दुरूहातिदुरूह-व्रजलीलागतं) [तदपि निश्चिन्वन्तु]; काव्येषु यत् लीलायितं (विलसितं, रासलीलादि-व्यञ्जनाविशेष ग्रथनं) [तदपि परिशेषयन्तु एतदनुसारेण निश्चिन्वन्तु] ॥2॥

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सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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