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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
द्वादश: सर्ग:
सुप्रीत-पीताम्बर:
त्रयोविंश: सन्दर्भ:
23. गीतम्
(4) मालती पुष्प-बाण रति-क्रीड़ा में केशों के मर्दन से पुष्पमाला मुरझाकर निपतित हो गयी थी, अत: मालती पुष्पबाण है। (5) कुसुमास्त्रबाण श्रीराधा की मेखला और अञ्चल शिथिल हो गये थे, इससे कामदेव के सुवर्ण जातीय चम्पा आदि बाणों को सूचित किया है। इन श्रीराधा के अंगों में विद्यमान पुष्पबाणों को देखकर श्रीकृष्ण का मन भी कीलित हो जाना स्वाभाविक ही था। इन बाणों ने श्रीकृष्ण के नेत्रों के माध्यम से उनके मन को भी आहत कर दिया। प्रस्तुत श्लोक को 'कामाद्भुताभिनवमृगांक लेख' नामक प्रबन्ध माना गया है। वही शार्दूलविक्रीड़ित छंद है और अद्भुतरसोपबृंहित श्रृंगार रस है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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