गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 485

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

द्वादश: सर्ग:
सुप्रीत-पीताम्बर:

त्रयोविंश: सन्दर्भ:

23. गीतम्

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(4) मालती पुष्प-बाण रति-क्रीड़ा में केशों के मर्दन से पुष्पमाला मुरझाकर निपतित हो गयी थी, अत: मालती पुष्पबाण है।

(5) कुसुमास्त्रबाण श्रीराधा की मेखला और अञ्चल शिथिल हो गये थे, इससे कामदेव के सुवर्ण जातीय चम्पा आदि बाणों को सूचित किया है।

इन श्रीराधा के अंगों में विद्यमान पुष्पबाणों को देखकर श्रीकृष्ण का मन भी कीलित हो जाना स्वाभाविक ही था। इन बाणों ने श्रीकृष्ण के नेत्रों के माध्यम से उनके मन को भी आहत कर दिया।

प्रस्तुत श्लोक को 'कामाद्भुताभिनवमृगांक लेख' नामक प्रबन्ध माना गया है। वही शार्दूलविक्रीड़ित छंद है और अद्भुतरसोपबृंहित श्रृंगार रस है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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