गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 484

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

द्वादश: सर्ग:
सुप्रीत-पीताम्बर:

त्रयोविंश: सन्दर्भ:

23. गीतम्

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बालबोधिनी- संभोग-लीला का वर्णन करते हुए कवि जयदेव कहते हैं कि सम्भोग के अन्त में श्रीराधा के पाँचों काम-शरों के द्वारा श्रीकृष्ण कीलित हो गये। कितनी अद्भुत बात है! प्रात:काल इन बाणों के प्रभाव से श्रीकृष्ण में पुन: काम उद्भूत हो गया। प्रियाजु के किन अंगों में पञ्च बाणों को देखकर श्रीकृष्ण में काम उत्पन्न हुआ? इसका निदर्शन करते हुए कवि कहते हैं-

(1) पलाश पुष्प बाण- कामक्रीड़ा में श्रीराधा के वक्ष:स्थल पर रक्त-कमल के समान अपने नखों से नखक्षत किया था। अत: पलाश पुष्प-बाण है।

(2) कमल पुष्प-बाण रात्रि में सो न पाने के कारण आँखों में कषाय हो रहा था, आँखें लाल-लाल हो रही थीं, अत: कमल पुष्प-बाण है।

(3) बन्धुजीव पुष्पबाण- श्रीराधा के अधरों की लालिमा प्रक्षालित हो गयी थी, अत: बन्धुजीव पुष्पबाण है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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