बालबोधिनी- जैसा कि पूर्वोक्त वर्णन करते हुए आ रहे हैं, उसी वीरसंवलित श्रृंगार की विवृत्ति करते हुए कहते हैं। इस श्लोक के पूर्व श्लोक से ही युक्त करना चाहिए। रति-केलि से संकुल रण के आरम्भ में वाम अंग में वर्तमान श्रीराधा के द्वारा सम्भ्रमपूर्वक स्मर-समर अभिनिवेश से संयम आदि के द्वारा कान्त पर विजय प्राप्त करने के लिए जो कुछ भी साहस किया, इससे वे पूर्ण रूप से थक गयीं। जघन-स्थली के निष्पन्द होने से वह चलने में असमर्थ हो गयीं। दोनों भुजाओं की शिथिलता के कारण वे बन्धन-प्रहार करने में असमर्थ हो गयीं। वक्षस्थल जोर-जोर से कम्पित होने लगा। आँखें बन्द हो गयीं और देखने में असमर्थ हो गयीं। किसी ने ठीक ही कहा स्त्रियाँ अबला होती हैं, उनमें वीर रस किस प्रकार से आ सकता है? पौरुषत्व को अबलाएँ प्राप्त नहीं कर सकतीं।
प्रस्तुत श्लोक को कुछ विद्वानों के द्वारा 'पौरुषप्रेम विलास' नामक प्रबन्ध माना गया है। इसमें शार्दूलविक्रीड़ित छंद, संभोग-श्रृंगार रस तथा विशेषोक्ति अलंकार है।
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