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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
द्वादश: सर्ग:
सुप्रीत-पीताम्बर:
त्रयोविंश: सन्दर्भ:
23. गीतम्
श्रीजयदेव-भणितमिदमनुपद-निगदितमधुरिपु-मोदम । अनुवाद- पद-पद पर मधुरिपु श्रीकृष्ण के आनन्द विनोद का वर्णन करने वाले जयदेव कवि द्वारा रचित यह गीत रसिक जनों में मनोरम-रति-रस-भाव विनोद को उत्पन्न करे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- अनुपद-निगदित-मधुरिपु-मोदं (अनुपदं प्रतिपदं निगदित: विवृत: मधुरिपो: श्रीकृष्णस्य मोद: हर्ष: यत्र तादृशं) इदं श्रीजयदेव भणितं (श्रीजयदेव कथित गीतं) रसिकजनेषु (श्रीकृष्णभक्तजनविशेषेषु) मनोरम-रतिरसभावविनोदं (मनोरमे रतिरसे यो भाव: तदास्वादरूप: तेन यो विनोद: हर्ष: तं) जनयतु ॥8॥
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