विषय सूची
श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
द्वादश: सर्ग:
सुप्रीत-पीताम्बर:
पद्यानुवाद बालबोधिनी- जब श्रीराधा निकुंज-लता-गृह में केलि-विलास शय्या के समीप पहुँचीं तो सखियाँ स्वयं को बाधक मानकर विविध प्रकार के बहाने बनाकर चली गयीं। श्रीकृष्ण ने श्रीराधा को मन में अत्यधिक लज्जित होते हुए देखा। काम की परवशता के वशीभूत हो मन्द-मन्द मुस्कराहट श्रीराधा के होठों पर खेल रही थी, उत्सुकता से पूर्ण पल्लवों की सेज की ओर देखे जा रही थीं, कुछ बोल नहीं पा रही थीं, मन अनुराग से भरा हुआ था, नवीन पल्लवों द्वारा रचित शय्या ही उनका अभिप्राय-सर्वस्व हो रहा था। श्रीराधा की ऐसी मानसिक स्थिति को देखकर श्रीकृष्ण ने सानुराग उनसे कहा। प्रस्तुत श्लोक में हरिणी छन्द है। इस सर्ग में स्वाधीनभर्तृ का नायिका वर्णित हुई है। शय्या का पुन-पुनरावलोकन श्रीराधा की संभोगेच्छा का निदर्शन करता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
सर्ग | नाम | पृष्ठ संख्या |