गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 46

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्

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तव करकमलवरे नखमद्भुतश्रृंगम
दलितहिरण्यकशिपु-तनुभृंगम्।
केशव धृत-नरहरिरूप
जय जगदीश हरे ॥4॥[1]


अनुवाद- हे जगदीश्वर! हे हरे! हे केशव! आपने नृसिंह रूप धारण किया है। आपके श्रेष्ठ करकमल में नखरूपी अद्भुत श्रृंग विद्यमान है, जिससे हिरण्यकशिपु के शरीर को आपने ऐसे विदीर्ण कर दिया जैसे भ्रमर पुष्प का विदारण कर देता है, आपकी जय हो ॥4॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय - हे केशव! हे धृत-नरहरिरूप! (नृरहरिरूपधर) तब कर-कमलवरे (पाणिपंकज-श्रेष्ठे) अद्भुतश्रृंग (अद्भुतंश्रृंगम अग्रं यस्य तादृशं) दलित-हिरण्यकशिपु-तनु-भृंग (दलिता विदारिता हिरण्यकशिपो: असुरराजस्य या तनु: शरीरं सा एव भृंग: येन तथाभूतं) नखं [शोभते इति शेष:], [अतिकोमलेन करकमल-केसरेण सुदृढ़-दैत्यदेहरूपभृदलनम्र अदृष्टचरम्र अतएव अद्भुतम्] हे जगदीश, हे हरे, त्वं जय (सर्वोत्कर्षेण वर्त्तस्व) ॥4॥

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सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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