गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 459

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:

द्वाविंश: सन्दर्भ:

22. गीतम्

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सौन्दर्यैकनिधेरनगं-ललना-लावण्य-लीलाजुषो
राधाया हृदि पल्वले मनसिज क्रीडै़करंगस्थले
रम्योरोजसरोजखेलनरसित्वादात्मन: ख्यापय-
न्ध्यातुर्मानसराजहंसनिभतां देयान्मुकुन्दो मुदम् ॥5॥
इति श्रीजयदेवकृतौ श्रीगीतगोविन्दे राधिकामिलने सानन्द-
दामोदरो-नामैकादश: सर्ग:।

अनुवाद- सौन्दर्य की निधि, अनंगललना रति के सदृश लावण्यमयी श्रीराधा के हृदय-सरोवर के मनोहर रंग-स्थल स्तन-कमल पर क्रीड़ापरायण हुए एकाग्रचित्त, अपना ध्यान करने वालों के मानस राजहंसत्त्व को ख्यापित करने वाले श्रीमुकुन्द आपको आनन्द प्रदान करें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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