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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:
द्वाविंश: सन्दर्भ:
22. गीतम्
बालबोधिनी- चिरकाल के विरह के पश्चात् जब श्रीराधा का श्रीकृष्ण के साथ मिलन हुआ तो श्रीराधा के नेत्र अपांगों (कटाक्षपातों) का अतिक्रमण करके कानों तक पहुँच गये। इसी श्रम से मानो उनके नेत्रों में पसीना आनन्दाश्रु के रूप में जलधारा के समान बहने लगा। इतने समय बाद प्रियतम को देखा तो हर्ष स्थिर न रह सका, आँखों से छलछलाने लगा। रतिक्रीड़ा के आस्वादन से आँखें पसीना-पसीना हो गयीं। बड़ी-बड़ी आँखें कानों तक पहुँचना चाहती थीं और इसी प्रयास में उनमें शैथिल्य आ गया। शिथिलता के कारण वे नमित हो गयीं, झुक गयीं, जलमय हो गयीं। नेत्र-प्रान्त का अतिक्रमण करके श्रवण पथ तक जाने के प्रयास में स्वेद-अम्बु छलछलाया। नेत्रों में प्रिय-दर्शन की आकांक्षा से अति चंचलत्व तो हो रहा था। श्रीराधा का सात्त्विक भाव प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत श्लोक में उपमा अलंकार है और शिखरिणी छंद है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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