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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
दशन अग्र धरणी यह लग्ना, बालबोधिनी- अष्टपदी के तृतीय पद में भगवान की स्तुति की गयी है। भगवान पृथ्वी को धारण करते हैं, इतना ही नहीं, समस्त चराचर को धारण करने वाली पृथ्वी को अपने दाँतों पर अवस्थित कर चलते भी हैं। सृष्टि के प्रारम्भ में हिरण्याक्ष जब बीजभूता पृथ्वी का अपहरण करके रसातल में चला गया था, तो श्रीभगवान ने वराहरूप धारण किया और प्रलयकालीन जल के भीतर प्रविष्ट होकर अपने दाँतों के अग्रभाग पर पृथ्वी को उठाकर ऊपर ले आये तथा अपने सत्यसप्रल्परूपी योगबल के द्वारा उसे जल के ऊपर स्थापित किया। जिस समय भगवान अपने दाँतों के अग्रभाग पर पृथ्वी को उठाकर ला रहे थे, उस समय उनके उज्ज्वल दाँतों के ऊपर पृथ्वी ऐसे सुशोभित हो रही थी, जिस प्रकार चन्द्रमा के भीतर उसके बीच में उसकी कालिमा सुशोभित होती है। कवि ने भगवान के दाँतों को बाल चन्द्रमा की उपमा देकर उनके दाँतों के महदाकारत्व तथा धरणी के अल्पाकारत्व को सूचित किया है। धरणी कलप्र कलावत निमग्ना है। निमग्न शब्द से वराहदेव भयानक रस के अधिष्ठाता रूप में प्रकाशित होते हैं। इस पद में उपमा अलंकार है। हे शूकररूप धारिण! आपकी जय हो ॥3॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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