गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 428

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:

एकविंश: सन्दर्भ:

21. गीतम्

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मृदुचल-मलय-पवन-सुरभि-शीते।
विलस मदन-शर-निकर-भीते॥
प्रविश.... ॥4॥[1]

विलस रसलविलसितगीते- यह पाठ भी मिलता है।

अनुवाद- मदन के बाण-समूह से भयभीत राधे! तुम रतिरस सम्बन्धीय सुललित गीत गा रही हो, तुम कोमल तथा चञ्चल मलय-पवन से प्रवाहित सुरभित तथा सुशीतल लता-केलि-गृह में प्रवेश करो और माधव के समीप जाकर उनके साथ विलास करो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- [अथ उद्दीपनाय अतिशयेन केलिसदनमेव वर्णयति]- रति-वलित-ललित-गीते (रतौ वलितं रतियोग्यं ललितं मनोहरं गीतं यस्याम् अयि तादृशि) राधे चल-मलयवन-पवन-सुरभि-शीते (चलेन मलयवन-पवनेन सुरभि च तत् शीतं शीतलञ्च यत् तस्मिन्) इह (केलिसदने) माधवसमीपं प्रविश [ततश्च] विलस (विहर) ॥4॥

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सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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