गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 427

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:

एकविंश: सन्दर्भ:

21. गीतम्

Prev.png

कुसुमचय-रचित-शुचि-वासगेहे।
विलस कुसुम-सुकुमार-देहे॥
प्रविश.... ॥3॥[1]

अनुवाद- कुसुम से भी मनोहर सुकुमार देह श्रीराधे! कुसुम-समूह से सुसज्जित पवित्र केलि-वास-भवन में तुम प्रवेश करो और माधव के समीप जाकर उनके साथ विलास करो।

पद्यानुवाद
तरल हार धर विलस उरज पर-
विविध सुमन से सजे भवन में
चल राधा! पिय-ढिग उपवन में।

बालबोधिनी- सखी कहती है- तुम्हारा शरीर फूलों से भी अति सुकुमार है और यह पूरा का पूरा केलिमण्डप चयन किये गये फूलों से रचा गया है और उन फूलों की चमक से उद्दीप्त हो रहा है, अतएव इस पवित्र शयनगृह में जाओ और श्रीकृष्ण के साथ आमोद करो। चलो, निर्भय प्रवेश करो, यह तुम्हारा ही घर है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- अयि कुसुम-सुकुमार-देहे (कुसुमेभ्योऽपि सुकुमार: कोमल: देह: यस्या: तादृशि) राधे कुसुमचय-रचित-शुचिवास-गेहे (कुसुमचयेन पुष्पसमूहेन रचितं शुचे: श्रृंगारस्य वासगेहं यत्र तस्मिन् निकुञ्जस्याभ्यन्तरे पुष्पगृहरचनाविशेष इति न पौनरुक्त्यम्) इह (केलिसदने) माधवसमीपं प्रविश ततश्च विलस (विहर)। [निकुञ्जगृहद्वारगत: प्रियस्त्वां प्रतीक्षते अतो वाम्यं न युक्तमितिभाव:] ॥3॥

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः