गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 423

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:

विंश: सन्दर्भ:

20. गीतम्

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बालबोधिनी- लजायी-सी श्रीराधा सखी के प्रोत्साहित करने पर जब निकुंज गृह में पहुँचती है तो श्रीहरि को वहाँ विद्यमान देखकर और भी लज्जित हो जाती है। निकुञ्ज द्वार उनके आभूषण की कान्ति से उनके मुक्ताहार की उज्ज्वलता से, उनकी सोने की करधनी की दीप्ति से, उनके पुखराज और कान की मणियों की द्युति से दीपित हो उठता है। उसी आलोक में उसे प्रतीक्षारत श्रीकृष्ण दीख जाते हैं- देखते ही लाज से भर जाती है। उचित ही तो है कामवती युवतियों के प्रथम संगम में लज्जा किसी कामातिशयता का ही विधान करती है। अब सखि उन्हें आगे पैर रखने के लिए अनुरोध करती है।

प्रस्तुत पद में वसन्ततिल का छंद है।  

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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