विषय सूची
श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:
विंश: सन्दर्भ:
20. गीतम्
बालबोधिनी- सखी कह रही है राधे! श्याम सघन केलि-कुंज में बैठे हैं, जहाँ सारे संसार का अंधकार मानो वहीं सिमट गया हो। कितनी उत्कण्ठा है उन्हें, कितनी आकुलता है और कितनी बेवसी, अब विलम्ब मत करो। रात्रिकाल में अभिसारिकाओं के लिए अंधकार उत्तम नीले वस्त्रों के प्रिय मिलन हेतु हलन-चलन-गमन को कोई भी तो नहीं जान पाता। नील वर्णवत् यह अंधकार भी नील वर्ण होने के कारण अभिसारिकाओं को अति प्रिय होता है। यह अंधकार ही धूर्त नायकों के साथ अभिसार की तथा रमण की इच्छा रखने वाली नायिकाओं का चारों ओर से आलिंगन करता है, निकुंजों में धूर्तों के साथ रमण की महा उत्कण्ठा उद्भूत कर देता है। यही अंधकार उन अभिसारिकाओं का अञ्जन है। कानों में कृष्णवर्ण का मयूर-पिच्छ-पुच्छ कर्णाभिराम है और तमालपत्र का काम भी यही करता है। उन नायिकाओं के हृदयों में नील कमलों का हार है और कुचों पर कस्तूरी के रस की चित्र-रचना है। इस प्रकार यह नील वर्ण का अंधकार आपके प्रत्येक अंग का आलिंगन करते हुए आपको अलंकरण प्रदान कर अलंकृत कर रहा है। अत: संकेत स्थल के उपयुक्त आभूषणों को धारण कर गाढ़ अंधकार में ही आप चलें, विलम्ब न करें। हर एक मुरमुट में अत्यन्त चतुर रसिकों के अभिसार के लिए पूरा वातावरण अनुकूल है। यह रात ही नील वसन है अपने निस्सीम विस्तार में अंग-अंग को लपेटी सी है। चलो-शीघ्र चलो। कहीं विपक्ष आदि की अन्य अभिसार का वहाँ अभिसार न करले उससे पूर्व ही तुम्हें वहाँ उपस्थित हो जाना चाहिए। इस समय नेत्रों में काजल; कानों में कर्णभूषण, गले में हार, कुचों पर कस्तूरीपत्र-भंग रचना आदि की आवश्यकता नहीं। शीघ्र चलो ॥2॥
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
सर्ग | नाम | पृष्ठ संख्या |