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प्रस्तुत श्लोक में शार्दूल विक्रीड़ित छन्द, दीपक अलंकार एवं अष्ट सात्त्विक विभाग हैं।
- स्तम्भ तथा वैवर्ण्य- निविड़ अन्धकार में श्रृंगारिक चेष्टाएँ तथा चिन्ताकुल होकर श्रीराधा को दूर-दूर तक देखना।
- वेपथु तथा रोमाञ्च- सुप्तभाव में श्रीराधा का कामकेलि वर्द्धक वार्तालाप का चिन्तन कर काँपना एवं पुलकित होना।
- अश्रु तथा स्वेद कल्पना- में श्रीराधा द्वारा प्रत्येक अंग-आलिंगन के आनन्द की अनुभूति करना और रतिक्रम विकास में पसीने से तर होना।
- स्वरभंग तथा प्रलय- रमण हेतु श्रीराधा को बुलाने में असमर्थ होना और श्रीराधा के न मिलने पर मूर्च्छित हो जाना।
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