गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 417

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:

विंश: सन्दर्भ:

20. गीतम्

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प्रस्तुत श्लोक में शार्दूल विक्रीड़ित छन्द, दीपक अलंकार एवं अष्ट सात्त्विक विभाग हैं।

  1. स्तम्भ तथा वैवर्ण्य- निविड़ अन्धकार में श्रृंगारिक चेष्टाएँ तथा चिन्ताकुल होकर श्रीराधा को दूर-दूर तक देखना।
  2. वेपथु तथा रोमाञ्च- सुप्तभाव में श्रीराधा का कामकेलि वर्द्धक वार्तालाप का चिन्तन कर काँपना एवं पुलकित होना।
  3. अश्रु तथा स्वेद कल्पना- में श्रीराधा द्वारा प्रत्येक अंग-आलिंगन के आनन्द की अनुभूति करना और रतिक्रम विकास में पसीने से तर होना।
  4. स्वरभंग तथा प्रलय- रमण हेतु श्रीराधा को बुलाने में असमर्थ होना और श्रीराधा के न मिलने पर मूर्च्छित हो जाना।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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