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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:
विंश: सन्दर्भ:
20. गीतम्
पद्यानुवाद बालबोधिनी- श्रीजयदेव कवि द्वारा कहा गया यह गीत रत्नों के हार को तिरस्कृत करने वाला, युवतियों को उदासीन बनाने वाले भगवद्भक्तों के कण्ठ में सदा निवास करे। यह हार अधरीकृत है। जो मुक्तादि से ग्रथित हार को अवदोलित करने वाला है। जिन पराशर आदि वैष्णवों का चित्त भगवान में लगा हुआ है, वे लोग रत्नों के हार को नहीं, जयदेव कथित इस हार को धारण करेंगे। वे ही वैष्णव इस गीत को अपने कण्ठ से आलिंगित करेंगे-किसी रमणी को नहीं। यह हार इन्हीं वैष्णवों के गले में विराजेगा। हार और रमणी तो सांसारिक रागियों के गले को अलंकृत करते हैं, और वे भी सभी अवस्थाओं में नहीं बल्कि तारुण्यावस्था में ही। जयदेव कवि कृत यह गीत श्रीहरि विषयक होने से भगवद्भक्तों के कण्ठ को सभी अवस्थाओं में समलंकृत करे। प्रस्तुत अष्टपदी में श्रृंगार विप्रलम्भ नामक रस है। उत्तम नायक है। श्रीहरितालराजिजलधरविलसित नाम का यह बीसवाँ प्रबन्ध सम्पूर्ण हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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