गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 381

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

दशम: सर्ग:
चतुरचतुर्भुज:

ऊनविंश: सन्दर्भ:

19. गीतम्

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इति चटुल-चाटु-पटु-चारु मुरवैरिणो राधिकामधि वचन-जातम्।
जयति पद्मावती रमण जयदेवकवि भारती भणितमतिशातम्॥
प्रिये चरुशीले.... ॥8॥[1]

अनुवाद- पद्मावती के प्रिय श्रीजयदेव कवि द्वारा विरचित राधिका को सम्बोधित करके श्रीकृष्ण द्वारा उक्त चाटुयुक्त सुकुमार, मान हरण में कुशल, मोहन माधुरीपूर्ण वचन समुदाय की जय हो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- इति (उक्तप्रकारं) पद्मावतीरमण-जयदेव-कवि-भारती-भण्तिं (पद्मावती श्रीराधा-परतया तथानाम्नी श्रीजयदेवपत्नी; तद्रगुण-वर्णनादिना तस्या: रमण: स चासौ जयदेवकविश्चेति; तस्य भारत्या वाण्या भणितं वर्णितं) राधिकाम अधि (राधिकां लक्ष्यीकृत्य इत्यर्थ:) चटुल-चाटु-पटु-चारु (चटुलं चातुर्ययुक्तं चाटु प्रीतिकरं पटु कौशलपूर्णं चारु मनोहरं यद्वा चटुलं चञ्चलं नानाविधमितियावत्, चटुल-चाटुना पटु मानापनयनसमर्थं चारु शोभनं) अतिशातं (परमसुखप्रदमित्यर्थ:) सुरवैरिण: (मुरारे:) वचनजातं (वाक्यसमूह:) जयति (सर्वोत्कर्षेण वर्त्तताम्) ॥8॥

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सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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