गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 370

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

दशम: सर्ग:
चतुरचतुर्भुज:

ऊनविंश: सन्दर्भ:

19. गीतम्

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अनुवाद हे शोभन-दन्ते! यदि तुम यथार्थ में ही मुझ पर कुपित हो रही हो तो मुझ पर तीक्ष्ण नख-वाणों का आघात करो, अपने भुजबन्धन में मुझे बाँध लो, दाँतों के आघात से मेरे होठों को काटो, जिससे तुम्हें सुख मिले तुम वही करो।

बालबोधिनी- श्रीकृष्ण श्रीराधा को मनाते हुए कह रहे हैं हे शोभनदन्ते! सुन्दर दन्तराजि से विलसित प्रियतमे राधे! तुम मेरे प्रति रोष मत करो। यदि वस्तुत: मुझ पर क्रोध प्रकाशित ही करना चाहती हो, तो मुझ पर अपने तीक्ष्ण नेत्र-वाणों का प्रहार करो, फिर भी तुम्हारे क्रोध की शान्ति नहीं होती है, तो मुझे और भी दण्ड दो। अपनी भुजाओं के बन्धन में मुझे बाँध लो, कैद कर लो, फिर भी सन्तुष्टि नहीं होती है तो अपने दन्त आघात से मुझे खण्डित कर दो, मेरे शरीर को काट डालो, इससे भी तुम्हें सन्तोष नहीं होता हो तो तुम्हें जो उपाय उचित लगे, वही करो। मैं अपराध योग्य हूँ, दण्डनीय हूँ। अपने सुख के लिए मुझ पर किसी भी दण्ड का विधान करो। यहाँ ताड़न-बन्धन, खंडन आदि के व्याज से नखक्षत, आलिंगन एवं चुम्बन आदि की प्रार्थना की जा रही है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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