गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 356

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

नवम: सर्ग:
मुग्ध-मुकुन्द:

अष्टदश: सन्दर्भ:

18. गीतम्

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सजल-नलिनीर्दल-शीलितशयने।
हरिमवलोकय सफलय नयने
माधवे... ॥5॥[1]

अनुवाद- तुम सजल कमल के दल से रचित शीतल शय्या पर श्रीकृष्ण को प्रेमभरी दृष्टि से अवलोकन कर नयन-युगल को सफल बनाओ।

पद्यानुवाद
सजल कमल जल शीतल शयने
प्रिय राजित हैं, कल चलनयने!
पूरे सब अरमान करो।
मानिनि! मत अब मान करो॥

बालबोधिनी- सखी श्रीराधा से कह रही है हे राधे! देखो, इस अभिसरण-स्थल पर हीरक-हारों से युक्त शीतल कमल-पल्लवों से रची सेज पर श्रीहरि लेट गये हैं, तुम उनका अवलोकन करो जिनके लिए तरस रही हो, उनके साथ कैसा कलह? वे तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं, तुम मान ही नहीं छोड़ रही हो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- [यथेयं युवतिसभा न विहसति तथोपदिश इत्याह]- सजल-नलिनी-दल-शीलित-शयने (सजलै: नलिनीदलै: शीलिते रचिते शयने शय्यायां) हरिम् अवलोकय; नयने (नेत्रे) सफलय (सफलीकुरु); [त्रिभुवननयनमहोत्सवावलोकनात् अन्यत् फलं नास्तीति भाव:] ॥5॥

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सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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