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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
नवम: सर्ग:
मुग्ध-मुकुन्द:
अष्टदश: सन्दर्भ:
18. गीतम्
पद्यानुवाद बालबोधिनी- श्रीराधा श्रीकृष्णोक्त सभी वाक्यों का तिरस्कार करती है, उनके युक्तियुक्त वचनों एवं प्रणत-भाव-समुदाय को छल चातुरी समझकर मन-ही-मन उनके व्यवहार की समालोचना करती है। प्रणय कोप से अनेक प्रकार के आक्षेप लगाती हैं। वे जितना भी प्रणत होते जाते हैं, उनका मान उतना ही बढ़ता जाता है, पुन: स्वकृत कलह को सोच-सोच कर सन्तप्त होती हैं, उद्विग्न होती हैं, केवल हरि की ही चिन्ता करती हैं इस प्रकार श्रीराधा की लहान्तरितावस्था की पाँच विशेषताओं का वर्णन किया गया है। मन्मथखिन्ना- काम की उद्विग्नता से श्रीराधा को अत्यधिक कष्ट की अनुभूति हो रही है। रतिरसभिन्ना काम- केलि रस से वञ्चित होने के कारण विषादशालिनी हो रही हैं। विषादसम्पन्नाम्- सम्भोग के प्रति अनुरक्ति होने के कारण वे भावशबलता की स्थिति तक पहुँच चुकी हैं। अनुचिन्तितहरिचरितां- वे बार-बार श्रीकृष्ण के चरित्र का ही चिन्तन कर रही थीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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