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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:
पंचदश: सन्दर्भ
15. गीतम्
बालबोधिनी- श्रीजयदेव इस अष्टपदी की संरचना में स्वयं को मधुरिपु के सेवकों में सर्वश्रेष्ठ मानकर यह प्रार्थना करते हैं कि इस गीति को सुनने वालों में कलियुग के दूषणीय चरित्र प्रविष्ट न हों। 'रसभणने' से तात्पर्य है- रसपूर्ण श्रृंगारिक उक्तियाँ कहने वाला। 'हरिगुणने' से तात्पर्य है श्रीहरि की कथाओं का अभ्यास करने वाले कविराज जयदेव। इस प्रबन्ध में आयी कवि की सभी उक्तियाँ रस की उद्दीपना कराने वाली हैं। इस रस की अभिव्यक्ति से कलियुग के प्रभाव से तामसी चित्तवृत्तियाँ हृदय में प्रविष्ट नहीं हो पाती हैं। इस प्रबन्ध का नाम हरिरसमन्मथतिलक है, जिसे प्रबन्धराज कहा गया है। यह द्रुत ताल एवं द्रुत लय से गाया जाता है। इसकी राग मल्हार है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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