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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:
पंचदश: सन्दर्भ
15. गीतम्
इह रस-भणने कृत-हरि-गुणने मधुरिपु-पद-सेवके। अनुवाद- श्रृंगार-रस से परिपूर्ण श्रीकृष्ण की लीला-कथाओं का कीर्तन करने वाले, मधुसूदन के सेवक मुझ कविराज जयदेव में कलियुग आचरित दुरित दोष प्रविष्ट न हों। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- रसभणने (रसस्य श्रृंगाररसस्य भणनं कथनं यत्र तस्मिन्) कृत हरे गुणनं (कृतं हरे: गुणनं गुणकीर्त्तनं येन तादृशे) मधु-रिपु-पद-सेवके (श्रीकृष्णपदसेवके) इह (अस्मिन्) कविनृप-जयदेव के (कविश्रेष्ठ-जयदेवे) कलियुग-चरितं (कलि-युगधर्म-वशादाचरितं) दुरितं (पापं) न वसतु ॥8॥
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