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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:
पंचदश: सन्दर्भ
15. गीतम्
चरण-किसलये कमला-निलये नख-मणिगण-पूजिते। अनुवाद- उस नितम्बिनी के अरुण मनोहरश्री से सम्पन्न एवं नखरूपी मणियों से विभूषित पद-पल्लवों को नखक्षत एवं मणियों से समलंकृत एवं लक्ष्मी के वासस्थल अपने हृदय पर स्थापित करते हुए बड़े यत्न से आवरण-आच्छादन करते हुए जावक-रस से रञ्जित कर रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- हृदि (वक्षसि) योजिते (विनिहिते) कमला-निलये (कमलाया: सौन्दर्याधिदेवताया: श्रिया: निलये आवासे) नखमणिगण-पूजिते (नखा एव मणिगणा: तै: पूजिते अर्चिते) चरणकिशलये (पादपल्लवे) यावक-भरणं (यावकं अलक्तकमेव भरणम् आभरणं) बहिरपवरणं (बहिरावरणं) जनयति (करोति) [श्रीनिवासस्य मणियुतस्य च बहिरावृतिर्युक्तैवेत्यर्थ:] [यद्वा कमलानिलये हृदि इत्येवमन्वय: कार्य:] ॥6॥
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