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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:
चतुर्दश: सन्दर्भ
14. गीतम्
बालबोधिनी- श्रीराधा ने विलाप करते हुए सारी रात बितायी। जब चन्द्रमा को अस्तांचल की ओर जाते देखा, तब अपने प्रति श्रीकृष्ण के पूर्वराग का स्मरण कर अपनी प्रिय सखी से कहने लगी अरे सखि! कितने कष्ट की बात है। यह जो चन्द्रमा है, सन्तप्त व्यक्तियों की विरह-व्यथा को और भी बढ़ा रहा है। अब यह अस्तमित हो रहा है, जिससे मेरा मदनताप तिरोहित हो रहा है। इसके पाण्डुवर्ण को देखकर मुझे श्रीहरि के मुखकमल का स्मरण हो रहा है मेरे विरह में वे कैसे निष्प्राण हो गये होंगे? अन्य प्रकार से अनुमान करती हुई कहती हैं कि श्रीहरि मेरा परित्याग कर किसी दूसरी रमणी के साथ रमण कर रहे हैं, इसलिए उनकी ढलते चन्द्रमा जैसी कान्ति हो गयी है, यही कारण है कि हृदय में सन्ताप और अधिक गहरा गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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