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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:
त्रयोदश: सन्दर्भ
13. गीतम्
बालबोधिनी- चन्द्रोदय हो जाने के कारण श्रीराधा, श्रीकृष्ण के संकेत-स्थल पर न आने के कितने ही कारणों का अनुमान कर रही थीं और सखी को श्रीकृष्ण के बिना लौटती देखकर वह विप्रलब्धा स्थिति की पराकाष्ठा को प्राप्त हो गयीं। दारुण वेदना के कारण कुछ भी बोलने में असमर्थ हो गयीं। सखी भी विषण्ण अवस्था को प्राप्त कर अवाक् थी। सखी को मौन देखकर यह अनुमान लगा लिया कि ब्रजराजनन्दन किसी अन्य नायिका के साथ रमण करते हुए देखने के कारण ही यह उदास एवं मौन हैं, इसलिए कुछ बोल नहीं रही हैं। श्रीराधा विलाप कर उठीं- जनार्दन हैं न- लोगों को पीड़ा देना ही तो उनका काम है अत: मुझे भी पीड़ित कर रहे हैं। विप्रलब्धा नायिका निरन्तर अभिवर्द्धित अनुराग के कारण नायिका दूती को भेजकर पहले किसी संकेत-स्थल पर पहुँच जाती है, परन्तु दैवयोग से निर्दिष्ट समय बीत जाने पर भी नायक वहाँ उपस्थित न हो तो वह नायिका विप्रलब्धा कहलाती है। प्रस्तुत श्लोक में उपेन्द्रवज्रा छन्द है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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