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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:
त्रयोदश: सन्दर्भ
13. गीतम्
पद्यानुवाद बालबोधिनी- अन्तर-हृदय की विकट विरह-वेदना को अभिव्यक्त करती हुई श्रीराधा कहती हैं- परमसुखस्वरूपा वसन्त ऋतु की ये सरस रात्रियाँ मुझे अतिशय व्यथित कर रही हैं, दूसरी ओर कोई सुकृतशालिनी किशोरी श्रीकृष्ण के साथ रति-क्रीड़ा का रसास्वादन कर रही है। उस विलासिनी के प्रेमपाश में बँधकर रमण करते हुए श्रीकृष्ण इस संकेत-भूमि पर नहीं आये। कितनी सुकृति का अभाव है? मैं विरह-विधुरा होकर विलाप कर रही हूँ और दूसरी उनके साथ रति-सुख का अनुभव कर रही है। विश्वकोष में विधुर का तात्पर्य 'विकलता' से है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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