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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
षष्ठ: सर्ग:
धृष्ट-वैकुण्ठ:
द्वादश: सन्दर्भ
12. गीतम्
त्वरितमुपैति न कथमभिसारम्। अनुवाद- बार-बार अपनी सखी से पूछती हैं सखि! श्रीकृष्ण अभिसरण के लिए शीघ्र ही क्यों नहीं आते? पद्यानुवाद बालबोधिनी- सखी श्रीकृष्ण से कहती है हे श्रीकृष्ण! कभी-कभी तो ऐसा होता है कि श्रीराधा बार-बार मेरे सामने आती हैं और यही पूछती हैं श्रीहरि इस संकेत स्थान पर मुझसे मिलने के लिए त्वरित क्यों नहीं आते? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- पुन: स्फूर्त्त्यपगमेतु आत्मानं पृथंमत्वा] हरि: कथं त्वरितम् अभिसारं (संकेतस्थानं) न उपैति (आगच्छति) इति अनुवारं (पुन: पुन:) सखीं (मां) वदति (पृच्छति) ॥5॥
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