गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 238

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

पञ्चम: सर्ग:
आकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष:

एकादश: सन्दर्भ

11. गीतम्

Prev.png

आश्लेषादनु चुम्बनादनु नखोल्लेखादनु स्वान्तज-
प्रोद्रबोधादनु सम्भ्रमादनु रतारम्भादनु प्रीतयो:।
अन्यार्थं गतयोर्भ्रमान्मिलितयो: सम्भाषणैर्जानतो-
र्दम्पत्योरिह को न को न तमसि व्रीड़ाविमिश्रो रस: ॥3॥[1]

अनुवाद- इस निविड़ तिमिर में नायक-नायिका एक-दूसरे को प्राप्त करने हेतु अन्वेषण के लिए भ्रमण करते हुए अन्य नायक तथा नायिका के भ्रम से मिले हुए सम्भाषण द्वारा एक दूसरे को पहचान लेने पर परस्पर आलिंगन, पश्चात् चुम्बन, उसके बाद नख-क्षत अर्पण, पश्चात् कामोद्रेक होने पर मदन के आवेश में सम्भ्रम के साथ रतिकेलि का प्रारम्भ होने पर सुरतक्रीड़ा के पश्चात् दोनों एक चमत्कारपूर्ण प्रीति का अनुभव करोगे। इस अन्धकार में व्रीड़ामिश्रित कौन-सा रस प्राप्त नहीं होगा? अतएव हे सुन्दरि! चलो, शीघ्रातिशीघ्र केलि-कुंज में चलें, भला ऐसे सुअवसर का क्या कभी त्याग किया जाता है?

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- [अथ उत्कण्ठावर्द्धनाय सुरतप्रीतेरत्याधिक्यं दर्शयति]-अन्यार्थं (अन्योन्यस लाभाय कार्यान्तरमुपलक्ष्य) गतयो: (संकेतस्थानं प्राप्तयो:) भ्रमात् (अन्वेषणाय भ्रमणात्) इह (ईदृशे सान्द्रे) तमसि (गाढ़ान्धकारे) मिलितयो: (संगतयो:) सम्भाषणै: (कण्ठध्वनिभि:) जानतो: (केयं कश्चायमिति विन्दतो:) दम्पत्यो: (स्त्रीपुंसयो:) यथाक्रमं आश्लेषात् (आलिंगनात्) अनु (पश्चात्), चुम्बनात् अनु, नखोल्लेखात् (नखानाम् उल्लेखात् आघातात्) अनु, स्वान्तजप्रोद्रवोधात् (स्वान्तजस्य कामस्य प्रोद्रवोधात् प्रकाशनात्), अनु, सम्भ्रमात् (साध्वसात्) अनु, रतारम्भात् (श्रृंगारारम्भणात्) अनु, प्रीतयो: (परितोषं गतयो:) क: क: व्रीड़ाविमिश्र: (व्रीड़या, कथं सहसैवं कर्त्तुमारब्धमित्येवं लज्जया विमिश्र: संवलित:) रस: (सम्भोगाद्यास्वाद:) न [भवति] न अपितु सर्वत्रैव सलज्ज: रसास्वाद: भवत्येव इत्यर्थ:]। [एतेन अभिसर्त्तुं श्रीराधिका-प्रोत्साहनमुक्तम्] ॥3॥

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः