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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
पञ्चम: सर्ग:
आकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष:
एकादश: सन्दर्भ
11. गीतम्
पद्यानुवाद बालबोधिनी- अब सखी श्रीकृष्ण के पास अभिसरण कराने के लिए श्रीराधा को प्रोत्साहित करती हुई कहती है हे नितम्बिनि! अर्थात प्रशस्त नितम्बों वाली श्रीराधे! चलने में तुम अब देर मत करो, काल का अतिक्रमण मत करो, श्रोणीभार से तुम वैसे ही धीरे-धीरे मन्द-मन्द चलती हो। उनके पीछे-पीछे तुम उस संकेतस्थान में त्वरित पहुँचो। इस संकेत-स्थल में रतिजन्य सुख की प्रधानता है। वहीं तुम्हारे हृदयेश, वनमाली श्रीकृष्ण मदन मनोहर वेश धारण किये हुए अभिसारगामी हो रहे हैं, उत्सुकतापूर्वक तुम्हारी बाट जोह रहे हैं। संकेतस्थल का स्पष्ट निदर्शन हुआ है। यमुना के तट पर वेतसी का वन है। हवा मन्द-मन्द चलते हुए कुछ-कुछ थिर-सी हो गयी है। यह मन्द समीरण रतिकाल में अति सुखदायी होता है, कानन तो अति निविड़-निर्जन है ही। श्रीकृष्ण का वेश मदन-सेवा के अनुकूल है, अभिसारगामी हो रहे हैं। चाँदनी रात में समयानुरूप वेषभूषा धारणकर अभिसरण करना अभिसार कहा जाता है। उस कुञ्ज-प्रदेश में वनमाली के पास पहुँचने में अब किञ्चित्र भी विलम्ब मत करो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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