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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
चतुर्थ: सर्ग:
स्निग्ध-मधुसूदन:
अथ नवम: सन्दर्भ
9. गीतम्
श्रीजयदेव-भणितमिति गीतम्। अनुवाद- श्रीजयदेव प्रणीत यह गीत श्रीकृष्ण के चरणों में शरणागत हुए वैष्णवों का सुख विधान करे। पद्यानुवाद बालबोधिनी- श्रीजयदेव के द्वारा नवें प्रबन्ध के रूप में श्रीहरि का यह गीत प्रस्तुत हुआ है। यह गीत 'भक्तजनों को सुख देगा', श्रीराधा की इस चित्त-भूमिका स्मरण सीधे केशव-चरणों में पहुँचेगा। इस गीत को कवि ने वैष्णवों के सान्निध्य में गाया है। यहाँ 'केशव' पद वैष्णवों का वाचक है। 'केशव: पदं = स्थानं यस्याऽसौ तं केशवपदम्' अर्थात भगवान जिनके द्वारा प्राप्य हैं, वे वैष्णव ही केशव पद-वाच्य हैं। इस सम्पूर्ण गीत में मालाचतुष्पदी नामक छन्द तथा उपमा अलंकार है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- इति (उक्तप्रकारेण) श्रीजयदेव-भणितं (श्रीजयदेवोक्तं) गीतं केशव-पदं (श्रीकृष्णपदम्) उपनीतं (प्राप्तं तत्पदयो: समर्पित-चित्तमिति यावत्) [भक्तम्] सुखयतु (सुखीकरोतु) ॥9॥
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