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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
तृतीय: सर्ग:
मुग्ध-मधुसूदन:
अथ सप्तम सन्दर्भ
7. गीतम्
बालबोधिनी- तृतीय सर्ग के अन्तिम श्लोक में कवि ने श्रीराधा के वचनों को प्रमाणित किया है। गोपांगनाओं के मध्य में अवस्थित श्रीकृष्ण को श्रीराधा-दर्शन से भावानुभूति हुई है, उसी को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। कवि ने पाठकों एवं श्रोताओं को आशीर्वाद प्रदान किया है कि मुग्ध-मधुसूदन आपका कल्याण विधान करें। मधुसूदन-जो श्रीराधा के मुखकमल की ईषत्र चञ्चलता एवं संमुग्धता का दर्शनकर अतिशय उल्लसित हुए हैं, सम्पूर्ण इतर कामनाओं का परित्याग कर श्रीराधा में एकनिष्ठ हुए हैं उनके कटाक्षपात की उर्मियाँ स्नेहातिशयता के कारण श्रीराधा के सुललित एवं मधुमय मुखचन्द्र पर स्थिर हो गयी हैं। संमुग्मा पद से श्रीराधा के मुख की मनोज्ञ अतिशयता बतायी गयी है। 'मधुर' पद से श्रीराधा के मुख को अमृत से भी मधुर बताया गया है। मोहकता एवं माधुर्य के कारण श्रीराधा के मुख को श्रीकृष्ण बड़े चाव से देखते हैं। 'सुधासार' से भी श्रीराधा के मुख का पीयूषत्व अभिव्यक्त हो रहा है। श्रीकृष्ण को आट्टादित करने के कारण श्रीराधा में विधुत्व का आरोप किया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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