गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 166

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

तृतीय: सर्ग:
मुग्ध-मधुसूदन:

अथ सप्तम सन्दर्भ
7. गीतम्

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पद्यानुवाद
जान रहा ईर्ष्यासे तन्वी! छिमा हृदय है तेरा।
कहाँ गयी है? सुन पायेगी क्या यह अनुनय मेरा?

बालबोधिनी- श्रीकृष्ण श्रीराधा की वियोगावस्था से अत्यन्त व्याकुल हैं, उद्विग्न हैं। वे अपने समक्ष ही विद्यमान-सी श्रीराधा को मानकर, स्फूर्त्ति के उद्रगमित होने पर श्रीराधा को 'तन्वि' पद से सम्बोधित करने लगे हे राधे! मैंने तुम्हें छोड़कर दूसरी ब्रजांगनाओं के साथ विहार किया। इसलिए तुम्हारा हृदय कलुषित हो गया है, तुम्हारे हृदय में अपनी उत्कर्षता के कारण दूसरों के प्रति ईर्ष्या भर गयी है। दोषारोपण के कारण तुम्हारा हृदय खेदमय हो गया है। तुम यहाँ से अन्यत्र चली गयी हो। यदि मैं जानता कि तुम कहाँ गयी हो तो तुम्हारा पाद स्पर्श करके तुम्हें मना लेता तुम से क्षमा माँग लेता ॥5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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