गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 16

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

श्रीश्रीगुरु-गौरांगौ जयत:

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प्रस्तावना

(ण)

श्रीजयदेव गोस्वामी ने कब जन्म ग्रहण किया, यह निर्णय करना परम दुसाध्य है। श्रीचैतन्य महाप्रभु के प्रधान शिष्य श्रीसनातन गोस्वामी द्वारा लिखित प्रमाण के अनुसार श्रीजयदेव गोस्वामी को बंगाधिपति महाराज लक्ष्मी सिंह का समकालीन व्यक्ति कहा जा सकता है। प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार पर यह कहा जाता है कि 1030 शकाब्द और 1107 खृष्टाब्द श्रीलक्ष्मण सेन के राजत्व का समय है। इसके सम्बन्ध में डा. राजेन्द्रलाल मित्र ने गभीर गवेषणा द्वारा पुष्ट प्रमाणों के आधार पर ऐसा लिखा है। अतएव उपरोक्त प्रमाणों के द्वारा यह प्रति पन्न हो रहा है कि श्रीलक्ष्मण सेन द्वादश शताब्दी के व्यक्ति थे और उन्हीं के समसामयिक श्रीजयदेव कवि भी द्वादश शताब्दी के होंगे, इसमें सन्देह की कोई बात नहीं है। महाराज पृथ्वीराज के सभासद चाँद कवि ने अपने चौहान-राष्ट्र नामक ग्रन्थ में प्राचीन कवियों का गुणगान किया है। श्रीजयदेव कवि एवं गीतगोविन्द का भी उसमें उल्लेख है। खृष्टीय द्वादश शताब्दी के शेषभाग में पृथ्वीराज दिल्ली नगर में राज्यकर रहे थे। 1193 खृष्टाब्द में दृशद्वति नदी के तीर पर मुहम्मद गौरी के साथ युद्ध में वे मारे गये। इसके द्वारा स्पष्ट प्रमाणित हो रहा है कि चाँद कवि के पूर्व ही गीतगोविन्द की रचना हो चुकी थी। ऐसा नहीं होने से चाँद कवि अपने ग्रन्थ में गीतगोविन्द का नामोल्लेख नहीं कर सकते थे।

श्रीजयदेव गोस्वामी की जीवनी के सम्बन्ध में नाभाजी भट्टप्रणीत भक्तमाल ग्रन्थ में अनेक अद्भुत और अलौकिक घटनाओं का वर्णन है। ग्रन्थ के बाहुल्य से उन सब विषयों का अधिक वर्णन करना अनावश्यक समझता हूँ।

श्रीजयदेव गोस्वामी को मानव-लीला सम्वरण किये हुए अनेक शताब्दियाँ बीत चुकी हैं किन्तु आज भी उनके तिरोभाव के स्मरण में कान्दुली-ग्राम में प्रतिवर्ष माघ महीने में मकर-संक्रान्ति से आरम्भ होकर एक विराट मेला लगता है। उस मेले में पचास-साठ हजार से एक लाख तक लोग सम्मिलित होकर श्रीजयदेव गोस्वामी की समाधि मन्दिर में उपासना करते हैं और उस समय सभी वैष्णव लोगमिलकर श्रीराधाकृष्ण के मिलन विषयक श्रीजयदेव गोस्वामी के काव्य का पठन-पाठन करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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