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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
श्रीश्रीगुरु-गौरांगौ जयत:
प्रस्तावना(ढ)कविवर श्रीजयदेव गोस्वामी ने पश्चिम बंगाल के वीर भूमि जिले में प्राय: दस कोस दक्षिण में अजय नदी के उत्तर भाग में स्थित केन्दुबिल्व नामक ग्राम में जन्म ग्रहण किया था। यह केन्दुबिल्व ग्राम साधारणत: केन्दुली के नाम से ही विशेषरूप से प्रचलित है। श्रीजयदेव के पिताजी का नाम भोजदेव और उनकी गर्भधारिणी माता का नाम वामादेवी था। श्रीजयदेव गोस्वामी ने स्वयं ही कहा है- वर्णितं जयदेवकेन हरेरिदं प्रवणेन। जिस प्रकार महाराज विक्रमादित्य एक परम विद्योत्साही और गुणग्राही थे, बंगाधिपति महाराज लक्ष्मणसेन भी उसी प्रकार से विद्वान और गुणियों का समादर करते थे। महाराज विक्रमादित्य की सभा जैसे कालीदास, वररुचि आदि नवरत्नों की शोभा से अलंकृत होती थी, महाराज लक्ष्मण सेन की सभा में उसी प्रकार गोवर्धनाचार्य, जयदेव इत्यादि पञ्चरत्न विराजमान थे।[1] उक्त महाराज की सभा के द्वारदेश में प्रस्तर फलक में जो श्लोक लिखा गया है, उसका पाठकर यह ज्ञात होता है कि महाराज लक्ष्मण सेन की सभा में गोवर्धन, शरण, जयदेव, उमापति और कविराज नामक राज-पण्डित थे। वह इस प्रकार है-
अत: श्रीगीतगोविन्द के प्रारम्भ में कवि जयदेव गोस्वामी के द्वारा लिखित इस श्लोक में इन सभी राजपण्डितों के नाम उल्लिखित हैं। इनमें उमापतिधर महाराज के प्रधानमंत्री थे। वे सभी पण्डितों का समादर करते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गोवर्धनश्च शरणो जयदेव उमापति:।
कविराजश्च रत्नानि समितौ लक्ष्णस्य च॥
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