गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 122

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ चतुर्थ सन्दर्भ
4. गीतम्

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पद्यानुवाद
मधु रास-मुग्ध सखि सम्मुख मातल राधा भर भुजमें
हरिको बोली 'प्रिय, कितना है अमृत मुख सरसिजमें।'
फिर गीत-स्तुति मिस सत्त्वर वह चूम उठी मुख उनका।
प्रिय चुम्बनसे प्रमुदित हरि अब दूर करें दु:ख सबका॥

बालबोधिनी- यह प्रथम सर्ग का अन्तिम श्लोक है। इस सर्ग का नाम सामोद-दामोदर है।

सखी वासन्ती रात का चित्रांकन करते हुए श्रीराधा जी को शारदीया रासस्थित श्रीकृष्णके विलासका स्मरण कराने लगी।

श्रीकृष्ण वसन्त ऋतु में कामोत्सव में मग्न हैं। लीलानायक श्रीकृष्ण आभीर वामनयना गोपियों के मध्य विराजमान हैं। पहले तो श्रीराधा विरहोत्कण्ठिता थी, किन्तु सखी से प्रेरित होने पर उनके हृदय में उत्कट अभिलाषा जाग उठी। लज्जाशीला होने पर भी प्रेमावेश के कारण सभी सखियों के समक्ष सुधामय वाक्यों से स्तुतिगान करने के बहाने श्रीकृष्ण के वक्ष:स्थल का सुदृढ़ आलिंगन कर उनका चुम्बन करने लगी।

समस्त व्रजरम्भाओं के समक्ष राधा के हृदय का भाव नि:शंकोच उद्रघाटित होने पर श्रीकृष्ण का मुखमण्डल मंजुल हर्ष से परिपूर्ण हो गया। शील-स्वभावा श्रीराधिका की विदग्धता एवं रासोल्लास के कारण विभ्रम भावोन्मत्ता प्रेमान्धता से अभिभूत हुए श्रीकृष्ण सबका मंगल विधान करें।

प्रस्तुत श्लोक में नायिका प्रगल्भा है और नायक मुग्ध है। शार्दूल विक्रीड़ित छन्द है। आशी:, अप्रस्तुत प्रशंसा, व्याजोक्ति आदि अलंकार हैं।

इति बालबोधन्यां श्रीगीतगोविन्दटीकायां प्रथम: सर्ग:।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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